कट्टर हिंदुत्व से कट्टर तालिबान तक संबंध !

देवबंद से तालिबान तक: वैचारिक समानता या राजनीतिक दूरी? 🕌 देवबंद से तालिबान तक: वैचारिक समानता या राजनीतिक दूरी? भारत–तालिबान संबंध : वक्त की ज़रूरत हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी की भारत यात्रा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा बटोरी। यह यात्रा भारत–अफ़ग़ानिस्तान संबंधों को नए सिरे से देखने का अवसर प्रदान करती है। वर्षों तक दोनों के बीच संवाद सीमित रहा, पर अब भू–राजनीतिक परिस्थितियों ने दोनों को बातचीत की मेज़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। सवाल यह भी है कि — क्या तालिबान की वैचारिक जड़ें देवबंद से जुड़ी हैं, और क्या भारत को ऐसे समूह से संबंध बढ़ाने चाहिए? आइए इसे क्रमवार समझते हैं 👇 🕋 1. देवबंद और तालिबान का वैचारिक संबंध 🔸 ऐतिहासिक आधार दारुल उलूम देवबंद की स्थापना 1866 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध धार्मिक और शैक्षणिक आंदोलन के रूप में हुई। इसका उद्देश्य था इस्लामी शिक्षा, नैतिकता और सामाजिक सुधार को पुनर्जीवित करना। 🔸 वैचारिक समानता, प्रत्यक्ष संबंध नहीं “तालिबान” शब्द का अर्थ है विद्यार्थी — उनके कई सदस...

टाइम ट्रेवलिंग और ब्रह्मांड के रहस्य

 टाइम ट्रेवलिंग और अंतरिक्ष के रहस्य;

( दर्शन और विज्ञान की मिलती सीमाएं)


गत दिनों नासा के जेम्स टेलीस्कोप ने ब्रह्माण्ड की हाई रिजॉल्यूशन वाली और रंगीन तस्वीरें जारी की जो न केवल रंगीन थी बल्कि 4 अरब वर्ष पहले की थी। यह टेलीस्कोप हब्बल दूरबीन से कई गुना अधिक शक्तिशाली था।


इन तस्वीरों से ब्रह्मांड के कई रहस्य सुलझेंगे और कई सामने आएंगे। आकाशीय पिंडों की उत्पत्ति और विनाश के साथ साथ नई संभावनाओं की खोज होगी।


प्रत्येक खोज के साथ दुनिया में नए बदलाव आते हैं।


नए रहस्य क्या ?



अरे यह कैसे संभव है कि 4 अरब वर्ष पहले तस्वीर मिले?


जी बिलकुल संभव है और आपको बता दूं आपकी आज की घटनाएं अरबों वर्ष बाद कोई देख रहा होगा।


नहीं समझ में आया? 


आइए समझते हैं;


हम किसी वस्तु को देखते हैं तो सिर्फ इसलिए कि प्रकाश उस वस्तु से टकराया और हमारी आंखों में आया और हमने रंग, रूप और आकार देखा।


अब प्रकाश की भी गति होती है  सूर्य से आने वाला प्रकाश 8 मिनट 30 सेकंड पहले का होता है। 


ऐसे ही आज कोई गृह या आकाशीय पिंड है उससे आने वाली प्रकाश की किरणे यहां तक पहुंच रही हैं और हम उसको देख रहे हैं।

जाहिर है आगे आने वाले समय में ऐसी मशीन बनाई जाएं जो दीवारों के आर पार और अंधेरे में हुई घटनाओं को लाखों वर्षों बाद देख सकें।

ये तस्वीरें साझा कर रहा हूं जो नासा ने साझा की हैं , स्रोत बीबीसी हिंदी


हम लोग लाखों वर्ष बाद एक अल्ट्रा दूरदर्शी से किसी और गृह पर देखे जा सकेंगे। अगर वहां कोई उपस्थित सभ्यता रही और वो स्थान सुरक्षित रहा तो इस सौर मंडल या आकाश गंगा के खत्म होने के बाद भी वहां आज वाले काम करते दिख जाएंगे।


आज हम काल्पनिक सिनेमा देखते हैं तब वैसा उनके लिए वास्तविक सिनेमा होगा। 


दूरबीन का रेडियो की तरह स्टेशन बदलते ही दृश्य और काल बदल जाएगा।

सोचिए आप जो आज कर रहे हो वो तब वैसा ही दिख सकेगा।


क्या यह संभव है?


तो जनाब जब जेम्स दूरबीन हब्बल टेलीस्कोप से अधिक शक्तिशाली बन चुकी है तो संभव है अंतरिक्ष में कोई सभ्यता हमसे ज्यादा आगे हो और वो कमाल कर दे। यह भी हो सकता है कि हमारी दुनिया खत्म हो तब हमारी पीढ़ियां किसी और ग्रह पर बस जाएं। और वो ही अपने पूर्वजों को देखें।


लेकिन यह टाइम ट्रैवल की एक संभावना है। दूसरी संभावना यह है कि ऐसी मशीन बनाई जा सकेगी जिसमें बैठते ही भूत काल में यात्रा कर बीते कल को देख सकें और बदलाव की कोशिश करें।


कितने ब्रह्मांड?



कई वैज्ञानिकों के अनुसार हमारा एक ही ब्रह्मांड है लेकिन एक से ज्यादा ब्रह्मांड हो सकते हैं।


एक से दूसरे में जाने का कोई रास्ता नहीं ,जैसे एक दिमाग को पार कर दूसरे में विचार नहीं घुसता।


टाइम और विस्तार में क्या संबंध ?


उपरोक्त चर्चा से लगता है टाइम और दूरी एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित है।

दूरी के साथ ट्रैवल करने पर टाइम बदलता है और टाइम के साथ ट्रैवल करने पर दूरी।


अगर प्रकाश से भी अधिक गति से गतिमान हो सके तो हम समय से आगे निकल सकते हैं और नकारात्मक गति होने पर टाइम ऋणात्मक अर्थात भूतकाल में प्रवेश करने लगेंगे।


इसका मतलब यह संभव है कि हम भूतकाल या भविष्य में जा सकें।

बिलकुल हां!


जो सोचते हैं वो संभव है!


१*  जो मस्तिष्क भौतिक वस्तुओं से बना है वो इनसे अलग नही है।


२* समस्त विचार और कल्पनाएं तथा संरचनाएं इस मस्तिष्की सीमा में संभव है वही पैदा होती हैं।


३* जो विचार या कल्पना आई वो हकीकत में संभव है।


ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु गतिशील है! 


बिलकुल , आप समझिए पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, यह सूर्य के चारों ओर परिभ्रमण करती है। सूर्य खुद अपने केंद्र के परित परिवार सहित घूम रहा है और अपने परिवार सहित आकाश गंगा के केंद्र के चारो और गतिशील है। 

खुद आकाश गंगाएं गैलेक्सी समूह में घूम रहा है। तो प्रत्येक कण , प्रत्येक वस्तु गतिशील है। 

एक कण कितनी गति करता है? हम गिन ही नहीं सकते। एक आकाशीय पिंड भी कई कई गतियां करता है। सब कुछ गतिमान है।


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